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वर्षा को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Rainfall in Hindi)

पृथ्वी पर बारह महीनों वर्षा का वितरण सर्वत्र समान नहीं रहता है, यह कुछ कारकों से प्रभावित होता है. जो इस प्रकार हैं.

वर्षा को प्रभावित करने वाले कारक

Varsha ko prabhavit karne wale kara

1. भूमध्य रेखा से दूरी

भूमध्य रेखा के पास सूर्य की किरणें पूरे वर्ष लंबवत रूप से पढ़ती हैं जिस कारण वाष्पीकरण काफी अधिक मात्रा में होता है तथा हवा में आर्द्रता की मात्रा में वृद्धि होती है, जब यह आर्द्र हवा ठंडी हो जाती है तो वर्षा होती है.

2. समुद्र से दूरी

जब गर्म हवाएँ समुद्र के ऊपर से गुजरती हैं तो वे बड़ी मात्रा में जल वाष्प को अवशोषित कर लेती हैं और जब ये नम हवाएँ स्थलीय भागों की ओर जाकर ठण्डी होती हैं तो वर्षा करती हैं.

ये नम हवाएँ समुद्र के आस-पास के भागों में बहुत अधिक वर्षा लाती हैं लेकिन जैसे-जैसे ये समुद्र से दूर जाती हैं तो इनमें जलवाष्प की मात्रा कम होती जाती है और इनकी वर्षा करने की क्षमता भी कम होती जाती है, यही कारण है कि तटीय भागों में आंतरिक भागों की तुलना में अधिक वर्षा होती है.

3. महासागरीय धाराएँ

जिस क्षेत्र के समीप गर्म धारा प्रवाहित होती है वर्षा उस क्षेत्र में अधिक होती है इसका कारण यह है कि गर्म जलधारा के ऊपर की हवा भी गर्म हो जाती है जिससे इसकी जलवाष्प धारण करने की क्षमता बढ़ जाती है.

जिस क्षेत्र के पास ठंडी धारा बहती है उस क्षेत्र में वर्षा कम होती है, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ठंडी धारा के ऊपर बहने वाली हवा भी ठंडी हो जाती है तथा अधिक जल वाष्प को अवशोषित नहीं कर पाती है.

गल्फ स्ट्रीम नामक गर्म धारा के कारण पश्चिमी यूरोप में पर्याप्त वर्षा होती है, उष्णकटिबंधीय और उपोष्ण कटिबंधीय में महाद्वीपों के पश्चिमी तटों के साथ ठंडी धाराएँ बहती हैं और वहां पर वर्षा की कमी के कारण मरुस्थल पाए जाते हैं. उन्हीं अक्षांशों में महाद्वीपों के पूर्वी तटों पर गर्म धाराएँ प्रवाहित होती हैं जिससे पर्याप्त वर्षा होती है.

4. धरातल

यदि किसी क्षेत्र में जल वाष्पीकृत हवाओं को रोकने के लिए कोई पर्वत नहीं है तो वर्षा नहीं होती है, उदाहरण के लिए, राजस्थान में अरब सागर से आने वाली मानसूनी हवाओं के रास्ते में कोई बड़ा पर्वत नहीं है. जिस कारण इस क्षेत्र में वर्षा कम होती है. वर्षा पर्वतों के पवनाभिमुखी ढालों पर अधिक तथा पवनविमुखी ढालों पर कम वर्षा होती है.

5. प्रचलित पवनें

जिस क्षेत्र में समुद्र से हवाएँ आती हैं वहाँ वर्षा अधिक होती है, लेकिन जहाँ स्थलीय हवाएँ चलती हैं वहाँ वर्षा कम होती है. भारत में 80% से अधिक वर्षा ग्रीष्म मानसून द्वारा होती हैं, क्योंकि वे समुद्र से आते हैं.

इसके विपरीत, सर्दियों में बहुत कम वर्षा होती है क्योंकि इस समय हवाएँ मुख्य रूप से भूमि से समुद्र की ओर चलती हैं.

6. प्राकृतिक वनस्पति

जिन देशों में प्राकृतिक वनस्पति अधिक होती है वहां वर्षा अधिक होती है इसका मुख्य कारण यह है कि वनस्पति क्षेत्रों में तापमान अपेक्षाकृत कम होता है, जिससे हवा में मौजूद जलवाष्प के संघनन में मदद मिलती है.

इसके अलावा पेड़ों की पत्तियां हवा में जलवाष्प छोड़ती रहती हैं जिससे हवा में नमी बढ़ जाती है तथा संघनन से वर्षा होती है.

7. चक्रवातों का विकास

जिन क्षेत्रों में चक्रवात आते हैं वहां अन्य क्षेत्रों की तुलना में अधिक वर्षा होती है, उष्णकटिबंधीय चक्रवात और शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात जहाँ भी जाते हैं बारिश लाते हैं.

निष्कर्ष: वर्षा को प्रभावित करने वाले कारक

वर्षा एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है जो जीवन के लिए आवश्यक है। इन कारकों को समझना आवश्यक है ताकि हम वर्षा का बेहतर प्रबंधन कर सकें और जल संसाधनों का संरक्षण कर सकें. 

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